BRICS की महत्वपूर्ण बैठक

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के गैर जिम्मेदाराना संरक्षणवाद और टैरिफ नीतियों के कारण ब्रिक्स देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक महत्वपूर्ण र ही। भारत ने वैश्विक व्यापार प्रणाली की सुरक्षा का आह्वान किया।

डॉनल्ड ट्रंप इस मंच को अमेरिकी प्रभुत्व के लिए चुनौती की तरह देखते हैं। ऐसे में संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक से इतर ब्रिक्स के विदेश मंत्रियों का मिलना अमेरिका को जाहिर तौर पर रास नहीं आएगा, लेकिन ट्रंप की मौजूदा नीतियों और संरक्षणवाद को देखते हुए जरूरी है कि भारत विकल्पों की तलाश तेज करे और विश्व में भारत के व्यापार का लगातार विस्तार करे। 

ब्राजील , रूस , चीन , दक्षिण अफ्रीका और दूसरे सदस्य  देशों की मेजबानी भारत की तरफ से भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने की। उन्होंने अमेरिका का नाम नहीं लिया, लेकिन टैरिफ और संरक्षणवाद के रूप में उन्होंने मौजूदा वैश्विक व्यापार के सामने खड़ी जिन चुनौतियों का नाम लिया, वे सीधे तौर पर वॉशिंगटन से जुड़ती हैं। उन्होंने ब्रिक्स देशों से वैश्विक व्यापार प्रणाली की सुरक्षा और अंतरराष्ट्रीय नियमों का पालन करने का आह्वान किया।

वर्तमान में ब्रिक्स की अध्यक्षता ब्राजील के पास है और अगले साल भारत को मिलनी है। ये दोनों ही देश अमेरिका के 50% टैरिफ का सामना कर रहे हैं और इससे इन दोनों देशों के व्यापार पर प्रभावित हुए है। ट्रंप की नीतियों ने अनुचित ढंग से ब्रिक्स के सदस्यों पर सबसे ज्यादा असर डाला है।

ग्लोबल GDP में ब्रिक्स की हिस्सेदारी 40% है, दुनिया की आधी आबादी इन देशों में रहती है और ग्रोथ के मामले में इसने G7 को पीछे छोड़ दिया है। ये आंकड़े ट्रंप की चिंता बढ़ाते हैं। उन्हें यह भी फिक्र है कि ब्रिक्स के सदस्य देश जिस तरह एक-दूसरे के साथ व्यापार में अपनी मुद्रा का इस्तेमाल कर रहे हैं, उससे डॉलर का दबदबा खत्म हो सकता है। हालांकि भारत का स्पष्ट कहना है कि यह मंच पश्चिम के विरोध का नहीं है और डॉलर की वैकल्पिक मुद्रा लाने की भी कोई योजना नहीं है।

इस बैठक की आवश्यकता थी, क्योंकि अमेरिका के साथ भारत की ट्रेड डील की बात अब भी रूसी तेल पर अटकी हुई है। जो गतिरोध पहले थे – यानी रूस से तेल खरीद, व्यापार में असंतुलन– वे अभी भी बने हुए हैं। इसके अतिरिक्त नए वीजा नियमों की वजह से भी भारतीय प्रफेशनल्स को मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में यह ठीक है कि अमेरिका के साथ बातचीत के जरिये मसलों को हल करने की कोशिश की जाए, लेकिन साथ में दूसरे मंचों का भी इस्तेमाल कर नए रास्ते खोले जाएं ताकि निर्यात और  विदेशी मुद्रा (अमेरिकी डॉलर) की प्राप्ति  में कमी ना हो और वैश्विक व्यापार में हिस्सेदारी लगातार बढ़ती रहे। 

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *